26-04-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

रूहानी विचित्र मेले में सर्व खज़ानों की प्राप्ति

सदा श्रेष्ठ मतदाता शिवबाबा अपने सुपात्र, आज्ञाकारी बच्चों प्रति बोले:-

आज बापदादा बच्चों के मिलन की लगन को दख रहे हैं। सभी दूर-दूर से किस लिए आये हैं? मिलन मनाने के लिए अर्थात् मेले में आये हैं। रूहानी मेला ‘विचित्र मेला’ है। इस मेले का मिलना भी विचित्र है और विचित्र आत्मायें विचित्र बाप से मिलती हैं। यह सागर और नदियों का मेला है। ईश्वरीय परिवार के मिलने का मेला है। यह मेला एक बार के मेले से अनेक बार की सर्व प्राप्ति करने का मेला है। इस मेले में खुले भण्डार, खुले खज़ाने हैं। जिसको जो खज़ाना चाहिए, जितना चाहिए उतना बिगर खर्चे के, अधिकार से ले सकते हैं। लाटरी भी है। जितनी भाग्य की श्रेष्ठ लाटरी लेने चाहे उतनी ले सकते हैं। अभी लाटरी लो और पीछे नम्बर निकलेगा, ऐसा नहीं है। अभी जो लेना हो, जितनी भी लकीर भाग्य की दृढ़ संकल्प द्वारा खीचने चाहो उतनी खींच सकते हो। सेकण्ड में लाटरी ले सकते हो। इस मेले में जन्म-जन्म के लिए राज्य पद का अधिकार ले सकते हो अर्थात् इस मेले में राजयोगी सो जन्म-जन्म के विश्व के राजे बन सकते हो। जितनी बड़ी प्राप्ति की सीट चाहिए वह सीट बुक कर सकते हो। इस मेले में विशेष सभी को एक गोल्डन चांस भी मिलता है। वह गोल्डन चांस है - ‘दिल से मेरा बाबा कहो और बाप के दिलतख्तनशीन बनो।’ इस मेले में एक विशेष गिफ्ट भी मिलती है - वह गिफ्ट है - ‘छोटा-सा सुखी और सम्पन्न संसार।’ जिस संसार में जो चाहो सब सदा ही प्राप्त है। वह छोटा-सा संसार बाप में ही संसार है। इस संसार में रहने वाला सदा ही प्राप्तियों के, खुशियों के अलौकिक झूलों में झूलता है। इस संसार में रहने वाले सदा इस देह की मिट्टी के मैले-पन के ऊपर फरिश्ता बन उड़ती कला में उड़ते रहते हैं। सदा रत्नों से खेलते पत्थर बुद्धि और पत्थरों से पार रहते हैं। सदा परमात्म साथ का अनुभव करते हैं। तुम्हीं से खाऊं, तुम्ही से सुनूँ, तुम्हीं से बोलूँ, तुम्हीं से सर्व सम्बन्ध की प्रीत की रीति निभाऊं, तुम्हारी ही श्रीमत पर, आज्ञा पर हर कदम उठाऊं। यही उमंग-उत्साह के, खुशी के गीत गाते रहते हैं। ऐसा संसार इस मिलन मेने में मिलता है। बाप मिला, संसार मिला। ऐसा यह श्रेष्ठ मेला है। तो ऐसे मेले में आये हो ना! ऐसा न हो कि मेला देखते-देखते एक ही प्राप्ति में इतने मस्त हो जाओ जो सर्व प्राप्तियाँ रह जायें। इस रूहानी मेले में सर्व प्राप्ति करके जाना है। बहुत मिला, इसमें ही खुश होकर चले जाओ, ऐसे नहीं करना। पूरा पा करके जाना। अभी भी चेक करो - कि मेले की सर्व प्राप्तियाँ प्राप्त कीं? जब खुला खज़ाना है तो सम्पन्न होकर ही जाना। फिर वहाँ जाकर ऐसे नहीं कहना कि यह भी करना था। जितना चाहिए था उतना नहीं किया। ऐसे तो नहीं कहेंगे ना? तो समझा, इस मेले का महत्व। मेला मनाना अर्थात् महान बनना। सिर्फ आना और जाना नहीं है। लेकिन सम्पन्न प्राप्ति स्वरूप बनना है। ऐसा मेला मनाया है? निमित्त सेवाधारी क्या समझते हैं? वृद्धि, विधि को भी चेन्ज करती हैं। वृद्धि होना भी जरूरी है और हर विधि में सम्पन्न और सन्तुष्ट रहना भी जरूरी है। अभी तो फिर भी बाप और बच्चे के सम्बन्ध से मिलते हो। समीप आते हो। फिर तो दर्शन मात्र रह जायेंगे। अच्छा-

सभी रूहानी मिलन मेला मनाने वाले, सर्व प्राप्तियों का सम्पूर्ण अधिकार पाने वाले, सदा सुखमय सम्पन्न संसार अपनाने वाले, सदा प्राप्तियों के, खुशियों के गीत गाने वाले, ऐसे सदा श्रेष्ठ मत पर चलने वाले, आज्ञाकारी सुपात्र बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

टीचर्स से:- सदा याद और सेवा का बैलेन्स रखने वाली और सदा बाप की ब्लैसिंग लेने वाली। जहाँ बैलेन्स हैं वहाँ बाप द्वारा स्वत: ही आशीर्वाद तो क्या वरदान प्राप्त होते हैं। जहाँ बैलेन्स नहीं वहाँ वरदान भी नहीं। और जहाँ वरदान नहीं होगा वहाँ मेहनत करनी पड़ेगी। वरदान प्राप्त हो रहे हैं अर्थात् सर्व प्राप्तियाँ सहज हो रही हैं। ऐसे वरदानों को प्राप्त करने वाले सेवाधारी हो ना! सदा एक बाप, एकरस स्थिति और एक मत होकर के चलने वाले। ऐसा ग्रुप है ना। जहाँ एकमत हैं वहाँ सदा ही सफलता है। तो सदा हर कदम में बाप वरदाता द्वारा वरदान प्राप्त करने वाले। ऐसे सच्चे सेवाधारी। सदा अपने को डबल लाइट समझकर सेवा करते रहो। जितना हल्के उतना सेवा में हल्कापन और जितना सेवा में हल्कापन आयेगा उतना सभी सहज उड़ेंगे-उड़ायेंगे। डबल लाइट बन सेवा करना, याद में रहकर सेवा करना - यही सफलता का आधार है। उस सेवा का प्रत्यक्ष फल मिलता ही है।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

संगमयुग सदा सर्व प्राप्ति करने का युग है। संगमयुग श्रेष्ठ बनने और बनाने का युग है। ऐसे युग में पार्ट बजाने वाली आत्मायें कितनी श्रेष्ठ हो गई! तो सदा यह स्मृति रहती है- कि हम संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें हैं? सर्व प्राप्तियों का अनुभव होता है? जो बाप से प्राप्ति होती है उस प्राप्ति के आधार पर सदा स्वयं को सम्पन्न भरपूर आत्मा समझते हो? इतना भरपूर हो जो स्वयं भी खाते रहो और दूसरों को भी बांटो। जैसे बाप के लिए कहा जाता है - भण्डारे भरपूर हैं, ऐसे आप बच्चों का भी सदा भण्डारा भरपूर है! कभी खाली नहीं हो सकता। जितना किसी को देंगे उतना और ही बढ़ता जयेगा। जो संगमयुग की विशेषता है व आपकी विशेषता है। हम संगमयुगी सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मायें हैं, इसी स्मृति में रहो। संगमयुग पुरूषोत्तम युग है, इस युग में पार्ट बजाने वाले भी पुरूषोत्तम हुए ना। दुनिया की सर्व आत्मायें आपके आगे साधारण हैं, आप अलौकिक और न्यारी आत्मायें हो! वह अज्ञानी हैं, आप ज्ञानी हो। वह शूद्र हैं, आप ब्राह्मण हो। वह दु:खधाम वाले हैं और आप संगमयुग वाले हो। संगमयुग भी सुखधाम है। कितने दु:खो से बच गये हो! अभी साक्षी होकर देखते हो कि दुनिया कितनी दु:खी है और उनकी भेंट में आप कितने सुखी हो! फर्क मालूम होता है ना! तो सदा हम पुरूषोत्तम युग की पुरूषोत्तम आत्मायें, सुख स्वरूप श्रेष्ठ आत्मायें हैं, इसी स्मृति में रहो। अगर सुख नहीं, श्रेष्ठता नहीं तो जीवन नहीं।

2. सदा याद की खुशी में रहते हो ना? खुशी ही सबसे बड़े ते बड़ी दुआ और दवा है। सदा यह खुशी की दवा और दुआ लेते रहो तो सदा खुश होने के कारण शरीर का हिसाब-किताब भी अपनी तरफ खींचेगा नहीं। न्यारे और प्यारे होकर शरीर का हिसाब-किताब चुक्तू करेंगे। कितना भी कड़ा कर्मभोग हो, वह भी सूली से काँटा हो जाता है। कोई बड़ी बात नहीं लगती। समझ मिल गई यह हिसाब-किताब है तो खुशी-खुशी से हिसाब-किताब चुक्तू करने वाले के लिए सब सहज हो जाता है। अज्ञानी हाय-हाय करेंगे और ज्ञानी सदा वाह मीठा बाबा! वाह ड्रामा की स्मृति में रहेंगे। सदा खुशी के गीत गाओ। बस यही याद करो कि जीवन में पाना था वह पा लिया। जो प्राप्ति चाहिए वह सब हो गई। सर्व प्राप्ति के भरपूर भण्डार हैं। जहाँ सदा भण्डार भरपूर हैं वहाँ दु:ख-दर्द सब समाप्त हो जाते हैं। सदा अपने भाग्य को देख हर्षित होते रहो - वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! यही सदा मन में गीत गाते रहो। कितना बड़ा आपका भाग्य है। दुनिया वालों को तो भाग्य में सन्तान मिलेगी, धन मिलेगा, सम्पत्ति मिलेगी लेकिन यहाँ क्या मिलता? स्वयं भाग्य विधाता ही भाग्य में मिल जाता है! भाग्य विधाता जब अपना हो गया तो बाकी क्या रह गया! यह अनुभव है ना! सिर्फ सुनी-सुनाई पर तो नहीं चल पड़े। बड़ों ने कहा भाग्य मिलता है और आप चल पड़े इसको कहते हैं - सुनी-सुनाई पर चलना। तो सुनने से समझते हो वा अनुभव से समझते हो! सभी अनुभवी हो? संगमयुग है ही अनुभव करने का युग। इस युग में सर्व प्राप्ति का अनुभव कर सकते हो। अभी जो अनुभव कर रहे हो। यह सतयुग में नहीं होगा। यहाँ जो स्मृति है वह सतयुग में मर्ज हो जायेगी। यहाँ अनुभव करते हो कि बाप मिला है, वहाँ बाप की तो बात ही नहीं। संगमयुग ही अनुभव करने का युग है। तो इस युग में सभी अनुभवी हो गये! अनुभवी आत्मायें कभी भी माया से धोखा नहीं खा सकती। धोखा खाने से ही दु:ख होता है। अनुभव की अथार्टी वाले कभी धोखा नहीं खा सकते। सदा ही सफलता को प्राप्त करते रहेंगे। सदा खुश रहेंगे। तो वर्तमान सीजन का वरदान याद रखना - ‘सर्व प्राप्ति स्वरूप सन्तुष्ट आत्मायें हैं। सन्तुष्ट बनाने वाले हैं।’ अच्छा-